Name Plate Controversy: हंगामा क्यों है बरपा? नाम जो पूछ लिया है ? नेमप्लेट विवाद पर योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका

Name Plate Controversy:  हंगामा क्यों है बरपा? नाम जो पूछ लिया है ? नेमप्लेट विवाद पर योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका

नई दिल्ली, 23 जुलाई 2024 – पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और समाचारों में एक मुद्दा गर्माया हुआ है: ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों को अपना नाम और लाइसेंस नंबर बड़े अक्षरों में लगाने की अनिवार्यता। इस नियम का पालन कराने की हालिया कोशिशों को लेकर काफी विवाद हो रहा है। लेकिन यह सवाल उठता है कि यह हंगामा अब क्यों है, जबकि यह कानून और नियम कई साल पहले ही लागू किए गए थे।

  1. 2006 में कानून: यह कानून मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान 2006 में बनाया गया था। उस समय इसे सार्वजनिक सुरक्षा और उपभोक्ता हितों की रक्षा के लिए लागू किया गया था।

  2. 2011 में नियम: 2011 में नियम बनाए गए थे कि सभी ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों को अपना नाम और लाइसेंस नंबर बड़े अक्षरों में लगाना होगा ताकि ग्राहक आसानी से देख सकें। इसका उद्देश्य था कि ग्राहक जानकारीपूर्ण निर्णय ले सकें और किसी भी संभावित धोखाधड़ी से बच सकें।

वर्तमान स्थिति

2024 में, इन नियमों का सख्ती से पालन कराने की पहल की जा रही है। लेकिन सवाल उठता है कि प्रबुद्धजीवियों के ज्ञान चक्षु आज अचानक क्यों खुल गए हैं?

  1. सेक्युलर चश्मा: यह आरोप लगाया जा रहा है कि यह नियम धर्मनिरपेक्षता की आड़ में अब लागू किया जा रहा है, जबकि यह कानून और नियम कई साल पहले से मौजूद थे।

  2. सोशल मीडिया का प्रभाव: आज के समय में सोशल मीडिया पर किसी भी मुद्दे को आसानी से उछाला जा सकता है। यह विवाद भी सोशल मीडिया पर जोर-शोर से फैलाया जा रहा है।

  3. राजनीतिक एजेंडा: कुछ लोगों का मानना है कि इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ के लिए उछाला जा रहा है। इससे समाज में धार्मिक ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा की जा रही है।

सवाल यह है कि 2011 के नियम को सख्ती से पालन ही तो करवाया जा रहा है, तो अब हंगामा क्यों? कानून और नियम का पालन करना सभी नागरिकों का कर्तव्य है और इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यह विवाद संभवतः सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उछाला जा रहा है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम तथ्यों को समझें और सही जानकारी के आधार पर निर्णय लें।