आखिर क्यों होते हैं हम सभी के कुलदेवी या कुलदेवता, जानें महत्व - THE PUBLIC NEWS 24
यदि आपको अपने कुलदेवी या कुलदेवता के बारे में जानकारी नहीं है, तो यह साधना दो सप्ताह तक किसी भी अमावस्या से शुरू की जा सकती है। इस साधना में 'कुलदेवता यंत्र', 'कुलदेवी भैषज' और 'प्रत्यक्ष सिद्धि माला' की आवश्यकता होती है। पूजा करते समय पूर्व की दिशा में मुख करके स्नान के बाद पूजा प्रारंभ करें।
क्यों होते हैं कुलदेवी या कुलदेवता?
हर परिवार या वंश का एक विशिष्ट दैवीय संबंध होता है जो पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ता है। कुलदेवी या कुलदेवता को वंश के संरक्षक के रूप में देखा जाता है, जो उस कुल के सभी सदस्यों की रक्षा करते हैं और उनका कल्याण सुनिश्चित करते हैं। यह धार्मिक परंपरा भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है और प्रत्येक परिवार के लिए विशेष महत्व रखती है।
कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा का महत्व
- कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने से परिवार पर आशीर्वाद बना रहता है और समृद्धि आती है।
- उनकी पूजा से परिवार की परंपराओं को बनाए रखने में मदद मिलती है।
- यह पूजा परिवार के सदस्यों के बीच एकता और सामंजस्य बढ़ाती है।
- नवविवाहित दंपत्ति को कुलदेवता के दर्शन कराने से उनके रिश्ते में सामंजस्य बना रहता है।
कब की जाती है कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा?
- हर शुभ अवसर पर कुलदेवी या कुलदेवता का आह्वान कर उनकी पूजा की जाती है।
- विशेषकर विवाह संस्कार में उन्हें आमंत्रित कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है ताकि परिवार की समृद्धि बनी रहे।
- बच्चे के जन्म के बाद, कुलदेवता के दर्शन के लिए ले जाना अनिवार्य माना जाता है, ताकि बच्चे का स्वास्थ्य अच्छा रहे और जीवन में कोई समस्या न आए।
कैसे की जाती है कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा?
यदि आपको अपने कुलदेवी या कुलदेवता के बारे में जानकारी नहीं है, तो यह साधना दो सप्ताह तक किसी भी अमावस्या से शुरू की जा सकती है। इस साधना में 'कुलदेवता यंत्र', 'कुलदेवी भैषज' और 'प्रत्यक्ष सिद्धि माला' की आवश्यकता होती है। पूजा करते समय पूर्व की दिशा में मुख करके स्नान के बाद पूजा प्रारंभ करें।
पूजा की विधि:
- घी का दीपक: शुद्ध घी से दीपक जलाएं और कपूर जलाएं।
- साबुत चावल चढ़ाएं: कुलदेवता को चंदन, अक्षत और सिंदूर लगाएं, हल्दी में भीगे पीले चावल चढ़ाएं।
- पान और सुपारी चढ़ाएं: पूजा के समय पान, सुपारी, लौंग, इलायची, और दक्षिणा अर्पित करें।
- प्रतीकात्मक पूजा: अगर आपके घर में कुलदेवी की तस्वीर नहीं है तो सुपारी पर कलावा लपेटकर प्रतीकात्मक पूजा करें।
कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा – हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता या कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है.
प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा । हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं ।
पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें |
समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा की जाती है. इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया |
कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है|
कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ,यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं, ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है , बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है|
ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ।
कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं.
यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है.
परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं. अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे ।
कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा के बिना शुभ अवसर अधूरे माने जाते हैं
कुलदेवी या कुलदेवता को परिवार का रक्षक माना जाता है और उनके बिना कोई शुभ कार्य अधूरा माना जाता है। ये घर-परिवार के प्रथम पूज्य होते हैं और उनकी उपस्थिति परिवार की समृद्धि के लिए आवश्यक मानी जाती है।
यदि कुलदेवी या कुलदेवता के बारे में जानकारी न हो
अगर किसी को अपनी कुलदेवी या कुलदेवता के बारे में जानकारी न हो तो मां दुर्गा और भैरव महाराज की पूजा की जा सकती है। यह पूजा भी उपयुक्त तरीके से किए जाने पर कुलदेवी या कुलदेवता की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
इस साधना को श्रद्धा और धैर्य के साथ करने से कुलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार की रक्षा और समृद्धि सुनिश्चित होती है।