राहुल गाँधी जी माना आप हाथरस पर ‘राजनीति’ नहीं कर रहे, पर संदेशखाली से लेकर तमिलनाडु में जहरीली शराब से मौतों तक पर आपकी चुप्पी क्यों?

राहुल गाँधी का हाथरस दौरा और अन्य घटनाओं पर उनकी चुप्पी दोनों ही विषयों पर गहन चर्चा की आवश्यकता है। क्या यह सही है कि एक राजनेता चुनिंदा मुद्दों पर ही सक्रिय हो? क्या उनके दौरे वाकई संवेदनशीलता से प्रेरित हैं या केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा? यह सवाल जनता के मन में उठते हैं और इनका उत्तर राहुल गाँधी और उनकी पार्टी को देना होगा।

राहुल गाँधी जी माना आप हाथरस पर ‘राजनीति’ नहीं कर रहे, पर संदेशखाली से लेकर तमिलनाडु में जहरीली शराब से मौतों तक पर आपकी चुप्पी क्यों?

नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गाँधी का हाथरस दौरा एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार, उन्होंने हाथरस में भगदड़ में मारे गए लोगों के परिवारों से मिलने का निर्णय लिया और वहां जाकर कहा कि "मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।" लेकिन इस दौरे के बाद एक बड़ा सवाल उठता है: राहुल गाँधी संदेशखाली में हुए महिलाओं के अत्याचार और तमिलनाडु में जहरीली शराब से मौतों पर चुप क्यों रहे?

संदेशखाली और महिलाओं पर अत्याचार

संदेशखाली, पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा गाँव, जहाँ महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं सामने आईं। महिलाओं ने चीख-चीख कर अपनी आपबीती सुनाई, लेकिन राहुल गाँधी या कांग्रेस का कोई भी नेता उनसे मिलने नहीं पहुँचा। यह सवाल उठता है कि क्या इन घटनाओं पर राहुल गाँधी की चुप्पी का कारण राजनीतिक मजबूरियां हैं या उनकी संवेदनशीलता का अभाव?

तमिलनाडु में जहरीली शराब से मौतें

तमिलनाडु के कुल्लाकुरिची में जहरीली शराब के कारण 65 लोगों की मौत हो गई। यह एक बड़ी त्रासदी थी, लेकिन राहुल गाँधी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। ना ही उन्होंने वहाँ के पीड़ित परिवारों से मिलने का निर्णय लिया। यह चुप्पी भी सवाल उठाती है कि क्या राहुल गाँधी की संवेदनाएँ केवल चुनिंदा घटनाओं पर ही जागृत होती हैं?

राजनीति और संवेदनाएँ

राहुल गाँधी का हाथरस दौरा यह संकेत देता है कि वे इस मुद्दे को प्रमुखता दे रहे हैं, खासकर जब यूपी में योगी सरकार इस मुद्दे पर पहले से ही सक्रिय है। उनके आलोचकों का कहना है कि वे केवल उन्हीं घटनाओं पर सक्रिय होते हैं जिनसे उनकी राजनीतिक छवि को लाभ हो सकता है। अगर वे वाकई संवेदनशील होते, तो वे सभी घटनाओं पर समान रूप से सक्रिय होते।

निष्कर्ष

राहुल गाँधी का हाथरस दौरा और अन्य घटनाओं पर उनकी चुप्पी दोनों ही विषयों पर गहन चर्चा की आवश्यकता है। क्या यह सही है कि एक राजनेता चुनिंदा मुद्दों पर ही सक्रिय हो? क्या उनके दौरे वाकई संवेदनशीलता से प्रेरित हैं या केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा? यह सवाल जनता के मन में उठते हैं और इनका उत्तर राहुल गाँधी और उनकी पार्टी को देना होगा।

यह स्पष्ट है कि राहुल गाँधी की राजनीति और संवेदनाएँ एक जटिल विषय है, जिस पर विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। जनता और मीडिया को यह देखने की जरूरत है कि राजनेता अपने कार्यों और बयानों में कितनी संवेदनशीलता और ईमानदारी दिखाते हैं।