भारत में आयरन, कैल्शियम और फोलेट की व्यापक कमी का खुलासा: लांसेट स्टडी THE PUBLIC NEWS 24,  आलोक शुक्ला द्वारा रिपोर्ट

लांसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चेतावनी दी है। अध्ययन के अनुसार, भारत में सभी आयु वर्गों और लिंग के लोग आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे आयरन, कैल्शियम और फोलेट की अपर्याप्त मात्रा का सेवन कर रहे हैं।

भारत में आयरन, कैल्शियम और फोलेट की व्यापक कमी का खुलासा: लांसेट स्टडी  THE PUBLIC NEWS 24,  आलोक शुक्ला द्वारा रिपोर्ट

भारत में आयरन, कैल्शियम और फोलेट की व्यापक कमी का खुलासा: लांसेट स्टडी

THE PUBLIC NEWS 24,  आलोक शुक्ला द्वारा रिपोर्ट

नई दिल्ली: हाल ही में लांसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चेतावनी दी है। अध्ययन के अनुसार, भारत में सभी आयु वर्गों और लिंग के लोग आवश्यक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे आयरन, कैल्शियम और फोलेट की अपर्याप्त मात्रा का सेवन कर रहे हैं। ये पोषक तत्व स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

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लांसेट अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम, जिसमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, यूएस के शोधकर्ता भी शामिल हैं, ने 185 देशों में 15 माइक्रोन्यूट्रिएंट्स के अपर्याप्त सेवन का आकलन किया। यह अध्ययन पहला है जिसने बिना सप्लीमेंट्स के आहार के माध्यम से इन पोषक तत्वों के अपर्याप्त सेवन का अनुमान लगाया है।

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अध्ययन के अनुसार, विश्वभर में लगभग 70 प्रतिशत, यानी 5 बिलियन से अधिक लोग आयोडीन, विटामिन ई और कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा का सेवन नहीं कर रहे हैं। भारत में, महिलाओं की तुलना में पुरुषों में जिंक और मैग्नीशियम की अपर्याप्त मात्रा का सेवन पाया गया, जबकि आयोडीन की कमी अधिकतर महिलाओं में देखी गई।

भारतीय संदर्भ में स्थिति

भारत में आयरन, कैल्शियम और फोलेट की कमी की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। अध्ययन के अनुसार, 10-30 वर्ष की आयु के पुरुष और महिलाएं कैल्शियम की कमी से सबसे अधिक प्रभावित हैं, खासकर दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में। यह कमी युवा पीढ़ी के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है, जिससे हड्डियों की कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।

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सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवर इन निष्कर्षों का उपयोग कर उन आबादी को लक्षित कर सकते हैं जिन्हें आहार हस्तक्षेप की आवश्यकता है। हालांकि, अध्ययन में फोर्टिफाइड फूड्स या सप्लीमेंट्स के सेवन को शामिल नहीं किया गया, जिससे कुछ विशेष स्थानों में, जहां लोग फोर्टिफाइड फूड्स और सप्लीमेंट्स का उच्च मात्रा में सेवन करते हैं, वहां के परिणाम संभावित रूप से अधिक हो सकते हैं।

यह अध्ययन सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है, जिससे वे माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को दूर करने के लिए सही दिशा में कदम उठा सकें और भारतीयों के समग्र स्वास्थ्य में सुधार कर सकें।