Hamare Barah फिल्म विवादित फिल्मों पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जनता में उठा बवाल फिल्म "हमारे बारह" का विवाद
हमारे बारह' पर याचिकाकर्ता का क्या है आरोप? मामले में याचिकाकर्ता अजहर बाशा तंबोली ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के खिलाफ रिट याचिका दाखिल करके हमारे बारह को दिए गए सर्टिफिकेशन को रद्द करने और रिलीज पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिकाकर्ता का आरोप है कि फिल्म का टीजर सिनेमेटोग्राफ एक्ट, 1952 का उल्लंघन करता है.
नई दिल्ली, 11 जून 2024 - भारतीय फिल्म उद्योग में धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले विषयों पर सुप्रीम कोर्ट के दोहरे मानकों को लेकर एक बार फिर विवाद उठ खड़ा हुआ है। पीके और हमारे बारह जैसी फिल्मों पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों ने जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाओं को जन्म दिया है।
पीके फिल्म का मामला
2014 में रिलीज़ हुई फिल्म पीके में ऐसे दृश्य शामिल थे, जिनमें हिंदू देवताओं का मजाक उड़ाया गया था। इस फिल्म को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे और कई धार्मिक संगठनों ने इसे बैन करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उस समय कहा था, "अगर आपको यह पसंद नहीं है तो इसे न देखें।"
हमारे बारह फिल्म का मामला
2024 में रिलीज़ हुई फिल्म हमारे बारह, जिसमें मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि को दिखाया गया है, को लेकर भी भारी विरोध हुआ। मुस्लिम संगठनों ने इसे समुदाय के खिलाफ भड़काऊ और अपमानजनक बताया और इसे बैन करने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस फिल्म पर बैन लगाने का आदेश दिया, यह कहते हुए कि फिल्म मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को आहत कर रही है।
जनता की प्रतिक्रियाएं
इन दो फैसलों को लेकर सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा साफ दिखाई दे रहा है। कई लोग सुप्रीम कोर्ट पर दोहरे मानकों का आरोप लगा रहे हैं और न्याय व्यवस्था को निष्पक्षता की मांग कर रहे हैं।
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हैशटैग ट्रेंड्स: #दोगली_न्याय_व्यवस्था, #SupremeCourt, #HamareBarah, #Hindu और #Muslim जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए।
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प्रमुख प्रतिक्रियाएं: एक उपयोगकर्ता ने लिखा, "अगर पीके को न देखने की सलाह दी जा सकती है, तो हमारे बारह को भी न देखने की सलाह क्यों नहीं दी गई?" वहीं, दूसरे उपयोगकर्ता ने लिखा, "हमारी न्याय व्यवस्था को निष्पक्ष होना चाहिए और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।"
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फिल्म "हमारे बारह" विवादित इसलिए बन गई क्योंकि यह कुछ संवेदनशील सामाजिक और धार्मिक मुद्दों को छूती है। इस फिल्म में ऐसे विषयों को उठाया गया है जो विभिन्न समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकते हैं। कुछ समूहों ने आरोप लगाया कि फिल्म उनके धार्मिक विश्वासों और सांस्कृतिक मान्यताओं का अपमान करती है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
फिल्म "हमारे बारह" के संबंध में कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं। याचिकाकर्ताओं ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने या उसमें कुछ दृश्यों को हटाने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कहा:
- स्वतंत्रता का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर जोर देते हुए कहा कि फिल्म निर्माताओं को अपनी क्रिएटिविटी को प्रदर्शित करने का पूरा अधिकार है।
- संवेदनशीलता का ध्यान: कोर्ट ने फिल्म निर्माताओं को यह भी सलाह दी कि वे समाज की संवेदनशीलता का ध्यान रखें और ऐसे विषयों को संभालते समय सावधानी बरतें।
- सेंसरशिप और विवाद: कोर्ट ने कहा कि अगर फिल्म को सेंसर बोर्ड ने मंजूरी दे दी है, तो उसे प्रदर्शन की अनुमति होनी चाहिए, जब तक कि यह किसी विशेष समुदाय को उकसाने का प्रयास नहीं करती।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक और सामाजिक विशेषज्ञों का मानना है कि इन फैसलों से न्याय व्यवस्था पर लोगों का भरोसा कम हो सकता है। वे कहते हैं कि न्यायपालिका को अपने फैसलों में समानता और निष्पक्षता को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि सभी समुदायों को न्याय मिल सके।
निष्कर्ष
पीके और हमारे बारह जैसी फिल्मों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने एक बार फिर न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता में इन फैसलों को लेकर गुस्सा और निराशा साफ दिखाई दे रही है। यह समय है कि न्यायपालिका अपने फैसलों में समानता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करे ताकि सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान किया जा सके और देश में शांति और सद्भावना बनी रहे।फिल्म "हमारे बारह" पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज की संवेदनशीलता के बीच संतुलन बनाने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। जनता की प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि इस प्रकार के मुद्दों पर समाज में गहरा विभाजन है। ऐसे मामलों में बातचीत और संवाद की आवश्यकता है ताकि समाज में शांति और सामंजस्य बना रहे।