आईसी 814 विमान अपहरण: भारत के सबसे लंबे और दर्दनाक अपहरण की कहानी - THE PUBLIC NEWS 24,
आईसी 814: कंधार अपहरण अपहरणकर्ताओं ने विमान को कई बार अपना मार्ग बदलने के लिए मजबूर किया, पहले इसे अमृतसर, फिर लाहौर और बाद में दुबई, संयुक्त अरब अमीरात ले जाया गया, जहां ईंधन भरे जाने की एवज में 27 यात्रियों को रिहा किया गया, जिसमें एक गंभीर रूप से घायल बंधक भी शामिल था, जिसने बाद में अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया.
THE PUBLIC NEWS 24, श्री. आलोक शुक्ला द्वारा रिपोर्ट नई दिल्ली: साल 1999 में हुआ भारतीय एयरलाइंस के विमान आईसी 814 का अपहरण, भारतीय इतिहास के सबसे गंभीर और लंबे हवाई अपहरण के रूप में जाना जाता है। इस घटना को लेकर हाल ही में नेटफ्लिक्स पर एक नई सीरीज लॉन्च हुई है, जिसे अनुभव सिन्हा ने निर्देशित किया है। यह सीरीज उस दर्दनाक घटना की विभिन्न परतों को उजागर करती है, जिसमें दिल्ली के वॉर रूम में बैठे राजनेता और नौकरशाह से लेकर विमान के भीतर फंसे आतंकित यात्रियों तक, सभी के दृष्टिकोण को दिखाया गया है।
24 दिसंबर, 1999 को, पांच आतंकवादियों ने नेपाल से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले भारतीय एयरलाइंस के विमान आईसी 814 का अपहरण कर लिया। अपहरणकर्ताओं ने विमान के कप्तान देवी शरण को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया, लेकिन पाकिस्तान ने विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी। इस स्थिति में, विमान को पंजाब के अमृतसर हवाई अड्डे पर आपातकालीन स्थिति में उतारना पड़ा, जब उसमें केवल 10 मिनट का ईंधन बचा था।
अमृतसर में ईंधन भरने के बाद, अपहरणकर्ताओं ने विमान को लाहौर की ओर मोड़ दिया। यहां पाकिस्तान के एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) ने विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी, और हवाई अड्डे की सभी लाइटें और नेविगेशनल उपकरण बंद कर दिए गए। परंतु, अंतिम समय पर अपहरणकर्ताओं को लाहौर में उतरने की अनुमति दी गई, जहां उन्होंने विमान में फिर से ईंधन भरा और उसे दुबई की ओर मोड़ दिया। दुबई में उन्हें उतरने की अनुमति नहीं मिली, लेकिन उन्होंने अल मिनहद एयर बेस पर आपातकालीन लैंडिंग की, जहां अपहरणकर्ताओं ने 176 यात्रियों में से 27 को रिहा कर दिया, जिसमें 25 वर्षीय रूपिन कटयाल का शव भी शामिल था, जिसे अपहरणकर्ताओं ने बेरहमी से मार डाला था।
इसके बाद, विमान को अंततः अपहरणकर्ताओं के मूल लक्ष्य, तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान के कंधार हवाई अड्डे पर उतारा गया। यहां अपहरणकर्ताओं ने तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ सौदेबाजी की। यह सौदेबाजी 30 दिसंबर को तीन आतंकवादियों — अहमद उमर सईद शेख, मसूद अज़हर, और मुश्ताक अहमद ज़रगर — की रिहाई के साथ समाप्त हुई, जिसके बाद सभी बंधकों को रिहा कर दिया गया।
सरकार की आलोचना और अपहरण का प्रभाव
इस अपहरण के दौरान सरकार को संकट को जल्दी हल न कर पाने के कारण कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। यह घटना भारतीय विमानन इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई है और इसे याद करना अब भी उतना ही दर्दनाक है। इस घटना ने भारत की सुरक्षा और आतंकवाद से निपटने की रणनीतियों पर गहरा प्रभाव डाला, और यह एक ऐसा दिन है जिसे कोई भी भूल नहीं सकता।